वाद्य यंत्र संगीत में अहम् भूमिका निभाते हैं इसी श्रेणी में आज मैं आपको बांसुरी के विषय में कुछ अहम् जानकारी साँझा करना चाहूंगा | बांसुरी काष्ठ द्वारा निर्मित ऐसा वाद्य यंत्र है जो हवा के माध्यम से ध्वनि उत्पन्न करता है | बांसुरी की ध्वनि उसके निर्माण पर निर्भर करती है |
बांसुरी बनाने की प्रक्रिया -- बांसुरी बनाने लिए एक उपयुक्त बांस को काट कर इसके अंदरूनी गांठ को मिटाया जाता है सफाई के पश्चात इसके शरीर पर सात छेद किये जाते है | बांसुरी के मुख्यतः तीन भाग होते हैं | मुख द्वारा जिस छेद में हवा भरी जाती है उसे मुख रन्ध्र कहते हैं | दूसरा भाग जिसमे उंगलिया बाकि के छह छेदों में थिरकती हैं उसे स्वर रंध्र कहा जाता है और बाकि के भाग को शरीर कहते हैं |
बांसुरी का इतिहास ---बांसुरी का अविष्कार आज से लगभग तीस हज़ार साल से पैँतीस हज़ार साल पहले हुआ था | यूरोप में भालू के शरीर की हड्डियों से बांसुरी बनाई गई थी |बांसुरी का भारतीय इतिहस ---बासुरी को भारत में अनेक नामो से जाना जाता है जैसे -मुरली बंसी और बांसुरी |भारत में बासुरी का इतिहास बहुत भव्य रहा है | भगवान कृष्ण जिन्हें मुरलीधर भी कहा जाता है | बंसी जब भी कन्हैया के अधरों को सपर्श करती एक दिव्य संगीत चहुँ और गुंजायमान हो जाता जिससे गोपियाँ अधीर हो उठती और कन्हैया की मुरली सुनने को दौड़ी चली आती | गौओं को जब भी बांसुरी की मधुर ध्वनि सुनाई देती थी तो वें घास खाना छोड़ एक टक कन्हैया को निहारती रहती तथा बंसी की मंत्रमुग्ध कर देने वाले संगीत का श्रवण करती रहतीं | श्री राधा जी को भी बंसी की धुन अति प्रिये थी |इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने रास ,महारास और गोपियों तथा श्री राधा जी संग जितनी भी लीलाएं की उन सबमे बेणु अर्थात बंसी की अहम् भूमिका रही |
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