लाहौल की जनसँख्या हिमाचल के बाकि ज़िलों के मुकाबले काफी कम है | सर्दियों में परिस्थितियां विपरीत हो जाती हैं | यहाँ दिसम्बर से ही बर्फ पड़नी शुरू हो जाती है | अधिक बर्फ पड़ने के कारण यातायात ठप्प हो जाता है जिसके कारण लाहौल बाकि विश्व से छ्ह माह के लिए पूरी तरह से कट जाता है | बर्फ पड़ते ही जनवरी से त्योहारों का सीज़न भी शुरू हो जाता है | संग्रांद ,हालडा ,फागडी आदि त्यौहार यहाँ के लोग बड़े हर्षोउल्लास से मनाते हैं | दोस्तों बहुत सी बातें हैं जो आपको बतानी हैं |इसी कड़ी में मैं आज लाहौल के तीन स्थानों को केंद्र में रखते हुए अपने विचार आपके समक्ष रखूँगा | लाहौल के कण -कण में मोक्ष रमा है | यह वह धरा है जहाँ विवाह में शिव गौरा के गीत गाये जाते हैं | नव जोड़ों का विवाह शिव गौरा विवाह गीत को गाये बिना सार्थक नहीं होता है | यह वह धरा है जहाँ स्वयं महादेव राजा हिमाचल की पुत्री को ब्याहने लाहौल पधारे थे |ड्रिल्बू जो पुराणों के अनुसार चन्द्रभाग पर्वत पर है | इस पर्वत के चरण स्पर्श करती हुई माँ अस्किनी का संगम तीर्थ (चंद्र भागा) जैसे चंद्रभाग पर्वत से निरन्तर शुद्ध होने का आशीष ले रहीं हों | धार्मिक विचार ऐसे सथानो पर होना तो अवश्यम्भावी है | यहाँ के स्थानीय निवासी सनातन,बौद्ध तथा अन्य कई मतों के अनुसार अपनी मन वाणी को शुद्ध रखते हैं ,किन्तु किसी का भी अपने मत को लेकर किसी से भी कोई विवाद नहीं है | वे परस्पर बड़े प्रेम से रहते हैं |
गौशाल गांव
गौशाल गांव लाहौल स्पित्ति ज़िले का सबसे बड़ा गांव है |प्राचीन काल से ही गौशाल गांव को आध्यात्मिक संरक्षण मिलता रहा है | यह गांव कई संतों की कर्मभूमि रही है | एक समय यहाँ महर्षिः गौतम की गौशाला थी | इस गांव के क्षेत्र में गउएँ स्वतंत्रता से विचरण करती थीं इसे महान संतों की तपोस्थली कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी | गौशाल गांव को दो दिव्यदर्शी एवं ब्रह्म ज्ञानी महान संतों ने पुण्य तीर्थ बना दिया |एक संत जिन्होंने इस धरा को महादेव का कैलाश तथा दूसरे संत ने गौशाल को हरी का बेकुण्ठ बना दिया | साधु संत वो जो समाज को बेहतर दिशा दे | समाज में फल फूल रही भांति भांति की कुरीतिओं का अंत करे | ऐसे ही संतों का मार्ग दर्शन एवं ज्ञान आम जनमानस के ज़ीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है | और शायद ऐसे ही संतों की हमारे भारत वर्ष में दरकार है | लाहौल के गांव गौशाल में ऐसे ही महान संत का आगमन हुआ सद्गुरु ब्रह्म प्रकाश जी महाराज | सद्गुरु दिखने में तो सहज और सरल प्रतीत होते थे किन्तु वे ब्रह्म ज्ञानी थे |साधु वेश में उनके आभामंडल में दिव्य तेज प्रतीत होता था | सद्गुरु महाराज परम योगी थे |वे कई घंटो तक योग ध्यान में रहते थे | वे केवल एक ही समय का अन्न ग्रहण करते थे | लाहौल पहुँच कर गुरु महाराज जी चंद्र भागा के तट पर रहे |गौशाल में व्याप्त कुरीतियों से वे भलीभांति परिचित थे | गौशाल गांव के कुछ लोग गुरु महाराज जी के ज्ञान से प्रभावित हुए तथा इन्होने गुरु शरण ली | गुरु ने उन्हें दीक्षित किया तथा किसी भी जीव की हत्या को महा पाप बताया |गौशाल में बलि प्रथा सदियों से चली आ रही थी |इन महान संत के नेतृत्व में गौशाल गांव में बलि प्रथा का अंत हुआ | जहाँ बलि देने का स्थान था वहीँ पर गुरुमहाराज जी ने मंदिर की आधारशिला रखी |जहाँ पहले बलि लगती थी वहीँ आज यज्ञ हवन की सुगंध चारों और फैलती है | कीर्तन भजन से आज यहाँ के लोग भक्तिमय वातावरण में शांत महसूस करते हैं गौशाल गांव गुरु महाराज जी का सदैव ऋणी रहेगा | एक और दिव्यात्मा जिन्हे लाहौल के निवासी भगवान शिवजी का अवतार कहते हैं पूजनीय लला मेमे जी | इनका जन्म 1911 में गौशाल गांव में ही हुआ था | किशोरावस्था में ही इन्हे शिव तत्त्व की प्राप्ति हो चुकी थी | अंतिम श्वास तक ममे जी ने लोगों की सेवा की | जगह जगह जा कर कीर्तन भजन के माध्यम से भक्त जनो के कष्टों का निवारण किया तथा मनवांषित फल दिया |पुत्र प्राप्ति ,असाधिये रोगों से छुटकारा जैसे कई चमत्कारों की श्रृंख्लाओं का सम्पूर्ण लाहौल प्रत्यक्ष प्रमाण है | महादेव की कृपा से लला मेमे जी को भविष्यवाणी हुई | भविष्यवाणी में उन्हें सौ वर्ष की आयु प्रदान हुई | लला मेमे जी लोगों का कष्ट हर लेते |उनकी वाणी अटल थी वे जो भी कहते वो सत्य ही होता | उनका सानिध्य ही लाहौल वासियों को मुश्किल दौर से निकलने की प्रेरणा देता | साल २०११ के १५ फरबरी को लला मेमे जी शिव में विलीन हो गए | लाहौल के जनमानस में इनकी छवि हमेशा अमिट रहेगी | चंद्र भागा संगम
चंद्र भागा संगम का तट कई पौराणिक घटनाओं का साक्षी रहा है | पांडवों की अंतिम यात्रा का आखरी पड़ाव चंद्र भागा का तट था |कहा जाता है कि द्रोपदी का देहावसान इसी संगम तट पर हुआ था |यह भी कहा जाता है कि यहाँ के स्थानीय निवासियों ने द्रोपदी कि मृत्यु के सभी संस्कारों को पूर्ण किया था | सही मायनो में चंद्र भागा का तट लाहौल वासियों को अनुग्रहित करता है | चंद्र भागा संगम तट शास्त्रों में वर्णित है | भला यह तट किसी तीर्थ से कैसे कम हो सकता है | चंद्र भाग पर्वत चंद्र भाग पर्वत को लाहौल की भाषा में महफ़त धार अर्थात मृत्यु के बाद की यात्रा का पर्वत कहा जाता है |संक्षिप्त में कहें तो स्वर्ग का द्वार | द्रोपदी के मृत्यु के बाद पांडवों ने चंद्र भाग पर्वत की यात्रा की थी | इस पर्वत के शिखर में एक और तीर्थ है जिसे ड्रिल्बू कहा जाता है |प्राचीन काल में यहाँ महाराज हिमाचल का भव्य महल था | उनकी पुत्री पार्वती का विवाह यहीं से हुआ था | महादेव यहीं पर विवाह के सूत्र में बंधे थे | यहाँ से महादेव की बारात चम्बा स्तिथ कैलाश गई | हर लिहाज़ से लाहौल की धरती में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह निरंतर बना रहता है | इस प्रवाह को बनाये रखते हुए में अपनी वाणी को विराम देता हूँ अगले सत्र में फिर मुलाक़ात होगी |
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